महिला जज ने कहा, “कुछ मंत्री वगैरा थे वह जिला जज साहब के मिलने वाले थे।
हमें बात-बात पर टॉर्चर किया जा रहा था, हमें काम नहीं करने दिया जा रहा था।
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जब महिला जज ने इंसाफ की गुहार लगाई, तो 8 सेकंड में सारा मामला सुनकर अनसुना कर दिया गया।
महिला जज ने अंत में कहा, “अब मेरे पास सुसाइड के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचा है।”
उसकी बड़ी आत्मा ने इस दर्दभरे कदम का सोचा क्योंकि उसे लगा कि उसकी आवाज किसी ने नहीं सुनी गई।
हमारी समाजशास्त्र में जो चुप्पी बनी रहती है, वह इसे बढ़ावा देती है।
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हमें न्यायिक प्रणाली में सुधार की आवश्यकता है। सिर्फ कानूनी उपाय से बचाव नहीं होगा,
हमें अपने अधिकारों की रक्षा करने के लिए संघर्ष करना हो सकता है।
“जब जज ही सेफ नहीं हैं, तो क्या आम आदमी सेफ हैं?”
हमें अपने समाज को बदलने के लिए साथ मिलकर काम करना होगा।
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